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जीएचजी ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए परिवहन क्षेत्र का डीकार्बोनाइजेशन आवश्यक है: केंद्रीय पर्यावरण मंत्री श्री भूपेन्द्र यादव

 

"उच्च अग्रिम लागत और कम राजस्व की प्राप्ति ई-बसों की ओर परिवर्तन में चुनौतियाँ पैदा कर रही हैं", भारत-अमेरिका भुगतान सुरक्षा व्यवस्था ई-बस संचालन को प्रोत्साहित करेगा, भारत में एक विनिर्माण केंद्र स्थापित करेगा: श्री यादव

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री, श्री भूपेन्द्र यादव ने कहा है कि ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन को कम करने और वर्ष 2070 तक भारत सरकार द्वारा निर्धारित शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पूरा करने के लिए परिवहन क्षेत्र का डीकार्बोनाइजेशन आवश्यक है। केंद्रीय मंत्री महोदय आज भारत में ई-बसों के लिए भारत-अमेरिका "भुगतान सुरक्षा व्यवस्था (पीएसएम)" पर आयोजित एक अलग कार्यक्रम में बोल रहे थे।

श्री भूपेन्द्र यादव ने कहा कि शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) को अपनाना एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और यह देखते हुए कि बसें बड़े पैमाने पर जनता की सेवा करती हैं इस लिए परिवहन क्षेत्र को डीकार्बोनाइजिंग करने के लिए एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में इलेक्ट्रिक बसों को प्राथमिकता देना आवश्यक है।

श्री यादव ने कहा कि हालांकि, इलेक्ट्रिक-बसों की ओर यह परिवर्तन सार्वजनिक परिवहन प्राधिकरणों (पीटीए) के लिए उनकी उच्च अग्रिम लागत और संचालन से राजस्व की कम प्राप्ति के कारण चुनौतियां पैदा करता है। उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रिक-बसों के लिए भारत-अमेरिका भुगतान सुरक्षा व्यवस्था (पीएसएम) भारतीय और अंतरराष्ट्रीय ओईएम/बस ऑपरेटरों के लिए इलेक्ट्रिक-बस संचालन में भाग लेने और संभावित रूप से भारत में एक विनिर्माण केंद्र स्थापित करने के लिए प्रोत्साहन के रूप में काम करेगा, जो ई-बस उद्योग के विकास और ई-बस निर्यात में योगदान देगा।  केंद्रीय मंत्री महोदय ने दर्शकों को याद दिलाया कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की संयुक्त राज्य अमेरिका यात्रा के दौरान, भारत में निर्मित 10,000 इलेक्ट्रिक बसों की तैनाती को सुविधाजनक बनाने के उद्देश्य से "भुगतान सुरक्षा व्यवस्था (पीएसएम)" विकसित करने के लिए भारत-अमेरिकी सरकार का संयुक्त वक्तव्य जारी किया गया था। उन्होंने कहा कि भारत की जी-20 अध्यक्षता के दौरान परिवहन क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन को कम करने के महत्व को रेखांकित करते हुए इस कदम की फिर से पुष्टि की गई थी।

 

केंद्रीय मंत्री महोदय ने विश्वास व्यक्त किया कि यह पहल 10 से 12 वर्षों की विस्तारित अवधि के लिए इन वाहनों की खरीद और संचालन में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करके ई-बसों को लोकप्रिय बनाएगी, जिससे पूरे भारत में इन्हें अपनाने को प्रोत्साहन मिलेगा। उन्होंने कहा, "भुगतान सुरक्षा व्यवस्था (पीएसएम) योजना वित्तीय अनिश्चितताओं को दूर करने के लिए एक व्यापक रणनीति का प्रतिनिधित्व करती है, जो न केवल भारत के भीतर बल्कि वैश्विक स्तर पर ई-बसों को व्यापक और स्थाई रूप से अपनाने को प्रोत्साहन प्रदान करती है।" जलवायु के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति के विशेष दूत, सचिव जॉन केरी ने इस अवसर पर कहा, "भुगतान सुरक्षा व्यवस्था (पीएसएम) के साथ हम भारत को अपने बस बेड़े को विद्युतीकृत करने में शामिल करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठा रहे हैं।" उन्होंने कहा कि यह कदम परिवहन क्षेत्र के डीकार्बोनाइजेशन में भारतीय अवसर को अधिकतम करने के लिए एक भारतीय समाधान प्रदान कर रहा है।

गौरतलब है कि भारत इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाकर परिवहन क्षेत्र में संरचनात्मक बदलाव ला रहा है। सार्वजनिक परिवहन ईकोसिस्टम का विद्युतीकरण इस संरचनात्मक परिवर्तन के निर्माण खंडों में से एक है।

भारत का मौजूदा बस बेड़ा 1.5 मिलियन है, जिनमें से अधिकांश डीजल पर चलते हैं। संघीय सब्सिडी कार्यक्रम के जवाब में कुछ सफल प्रयोगों के बाद, भारत ने 1 बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य की 5,450 ई-बसों की एक बड़ी, एकीकृत निविदा निकाली और यह पांच राज्यों में फैली हुई है। चुनी गई कीमतें डीजल की तुलना में काफी कम थीं। सरकार ने इस सफलता से उत्साहित होकर 50,000 ई-बसों का लक्ष्य रखा। अनुबंध के विभिन्न चरणों में कुल 12,000 ई-बसें अब भारतीय सड़कों पर परिवहन के लिए आने वाली हैं।

सत्र का उद्देश्य वर्तमान बाधाओं को दूर करने के लिए भुगतान सुरक्षा व्यवस्था स्थापित करने के लिए संयुक्त अमेरिका-भारत सहयोग पर चर्चा करना था। भारत सरकार के 240 मिलियन डॉलर और अमेरिकी सरकार और उनके भागीदारों के 150 मिलियन डॉलर के योगदान के साथ, ई-भुगतान सुरक्षा व्यवस्था (ईपीएसएम) की स्थापना वित्तीय रूप से बाधित राज्य बस कंपनियों से विलंबित भुगतान की गारंटी देती है। भुगतान सुरक्षा व्यवस्था (पीएसएम) का लक्ष्य भारत में ई-बस निर्माताओं को 38,000 बसें तैनात करने के लिए 10 अरब डॉलर तक का गैर-आश्रय ऋण देना है।

 पृष्ठभूमि

 ई-बसों (एमएचआई) के लिए भुगतान सुरक्षा व्यवस्था

 भारत में लगभग 90 सार्वजनिक परिवहन प्राधिकरण (एसटीयू/एसटीसी/एसपीवी) लगभग 1.50 लाख बसें संचालित करते हैं। इनमें से लगभग 27,000 बसें शहरी क्षेत्रों में चलती हैं, जबकि लगभग 1.23 लाख बसें इंटरसिटी और मुफस्सिल मार्गों पर सेवा प्रदान करती हैं, जो प्रतिदिन लगभग 7 करोड़ यात्रियों को सेवा प्रदान करती हैं। वित्त वर्ष 2019-20 के लिए 35 सार्वजनिक परिवहन प्राधिकरण (पीटीए) के प्रदर्शन विश्लेषण से पता चलता है कि लगभग 19,726 करोड़ रुपये का संयुक्त शुद्ध घाटा हुआ है, जो पिछले वर्ष के 15,391 करोड़ रुपये के शुद्ध घाटे से 28 प्रतिशत अधिक है।

31 मार्च, 2020 तक सार्वजनिक परिवहन प्राधिकरण (पीटीए) का संचयी घाटा 1,22,378 करोड़ रुपये था, जिसमें मुख्य रूप से कम राजस्व और उच्च परिचालन लागत का योगदान रहा है। इस अवधि के दौरान सार्वजनिक परिवहन प्राधिकरण (पीटीए) के लिए कुल लागत वसूली सूचकांक 74 प्रतिशत था।

4,675 ई-बसों के लिए सीईएसएल की दूसरी निविदा ओईएम/ऑपरेटरों की कम भागीदारी के कारण जनवरी 2023 में रद्द कर दी गई थी। व्यक्त की गई चिंताओं में भुगतान में देरी, एसटीयूएस/एसटीसी की कमजोर वित्तीय स्थिति और भुगतान सुरक्षा व्यवस्था (पीएसएम) का अभाव शामिल है। एमएचआई ने एसईसीआई के समान एक भुगतान सुरक्षा व्यवस्था (पीएसएम) का प्रस्ताव दिया है, जो पीटीए द्वारा भुगतान में चूक के मामले में ई-बस ऑपरेटरों/ओईएम को 3 महीने की भुगतान सुरक्षा प्रदान करता है। सार्वजनिक परिवहन प्राधिकरण (पीटीए) का लक्ष्य राष्ट्रीय ई-बस कार्यक्रम के अंतर्गत 38,000 इलेक्ट्रिक बसों की खरीद को सम्मिलित करना है।

जून 2023 में प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के दौरान, भारत-अमेरिका सरकार के संयुक्त वक्तव्य में भुगतान सुरक्षा व्यवस्था (पीएसएम) विकसित करने की प्रतिबद्धता व्यक्त गई, जिसमें यूएसजी ने सार्वजनिक परिवहन प्राधिकरण (पीटीए) को भुगतान सुरक्षा के लिए 150 मिलियन डॉलर का अनुदान देने का वादा किया। 38,000 ई-बसों के लिए भुगतान सुरक्षा व्यवस्था (पीएसएम) की अनुमानित आवश्यकता लगभग 3,435 करोड़ रुपये है, जिसमें यूएसजी/जीईएपीपी/एससीएफ (150 मिलियन डॉलर या 1,231 करोड़ रुपये) और भारत सरकार (2,204 करोड़ रुपये) से संभावित वित्त पोषण स्रोत शामिल हैं। शुरुआत में एमएचआई का इरादा 25,000 ई-बसें खरीदने का है जिसके लिए 2345 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी।

 

एमएचआई ने एशियाई विकास बैंक (एडीबी), विश्व बैंक, केएफडब्ल्यू, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (एमओआरटीएच), नीति आयोग, आवास और शहरी विकास मंत्रालय (एमओएचयूए), डीईए, भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई), सीईएसएल, वित्तीय संस्थानों, बैंकों, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी), ओईएम, ई-बस ऑपरेटरों और अमेरिकी सरकार सहित विभिन्न हितधारकों से परामर्श किया। भुगतान सुरक्षा व्यवस्था (पीएसएम) पर एक मसौदा अवधारणा नोट टिप्पणियों और सहमति के लिए राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों के साथ साझा किया गया था। बिना सब्सिडी वाले 3 राज्यों (दिल्ली, पंजाब, जम्मू-कश्मीर) से और 4 राज्यों (चंडीगढ़, हरियाणा, महाराष्ट्र और ओडिशा) से आवास और शहरी विकास मंत्रालय (एमओएचयूए) की सब्सिडी के साथ सहमति प्राप्त हुई थी।

 एमएचआई ने टिप्पणियाँ और प्रतिक्रिया मांगने के लिए 27 अक्टूबर, 2023 को हितधारकों को ईएफसी नोट प्रस्तुत किया।

 

एमजी/एआर/आरपी/एमकेएस/एजे(रिलीज़ आईडी: 1984628) आगंतुक पटल : 115 प्रविष्टि तिथि: 09 DEC 2023 by PIB Delhi

 

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