संसद प्रश्न: - कॉप-29 के परिणाम
क्योंकि
यह विकासशील देशों की आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं को संबोधित नहीं करता है और साझा
लेकिन विभेदित उत्तरदायित्वों व संबंधित क्षमताओं (सीबीडीआर – आरसी) और समानता के
सिद्धांत के अनुरूप नहीं है।
2035
तक प्रति वर्ष 300 बिलियन डॉलर जुटाने का लक्ष्य विकासशील देशों की वित्तीय
आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है, जिनका अनुमान
संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन रूपरेखा सम्मेलन कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के तहत
वित्त संबंधी स्थायी समिति द्वारा 2030 तक 5.1-6.8 ट्रिलियन डॉलर (या प्रति वर्ष
455-584 बिलियन डॉलर) के बीच लगाया गया है।
इसके
अलावा,
बहुपक्षीय विकास बैंकों (एमडीबी) द्वारा जलवायु-संबंधी बहिर्वाह और
वित्तीय प्रयासों को 300 बिलियन डॉलर के लक्ष्य में योगदान के रूप में वर्गीकृत
करने में विकासशील देशों (जो एमडीबी में शेयरधारक हैं) का योगदान भी शामिल होगा,
जबकि यूएनएफसीसीसी और उसके पेरिस समझौते में यह अनिवार्य किया गया
है कि विकसित देश विकासशील देशों के लिए जलवायु वित्त प्रदान करें और उसे जुटाने
में अग्रणी भूमिका निभाएँ।
भारत
ने "1.3टी के लिए बाकू से बेलेम रोडमैप" पर अपना विचार प्रस्तुत किया
है। इसमें उल्लेख किया गया है कि रोडमैप में विकासशील देश पक्षों के दृष्टिकोण और
चिंताओं को प्रतिबिंबित किया जाना चाहिए और इसके सुझावों को यूएनएफसीसीसी और उसके
पेरिस समझौते के सिद्धांतों, जिनमें समानता, साझा लेकिन विभेदित जिम्मेदारियाँ और संबंधित क्षमताएँ (सीबीडीआर-आरसी) और
पेरिस समझौते के अनुच्छेद 9.1 के सिद्धांत शामिल हैं, का
पालन करना चाहिए।
यह
जानकारी केंद्रीय पर्यावरण,
वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री, श्री
कीर्ति वर्धन सिंह ने आज लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में दी।
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पीके/केसी/जेके
प्रविष्टि तिथि: 11
AUG 2025 by PIB Delhi(लोकसभा यूएस Q3482)(रिलीज़ आईडी: 2155291) आगंतुक पटल : 48